प्रथम खंड
:
15.
वक्र राजनीति अथवा क्षणिक हर्ष
केप टाउन में जहाज से उतरने पर और उससे भी अधिक जोहानिसबर्ग पहुँचने पर हमने
देखा कि मदीरा में मिले हुए तार की हमने जो कीमत आँकी थी उतनी कीमत वास्तव
में उसकी नहीं थी। इसमें दोष तार भेजनेवाले श्री रिच का नहीं था। उन्होंने तो
एशियाटिक एक्ट की अस्वीकृति के बारे में जो कुछ सुना था उसी के अनुसार तार
किया था। हम पहले बता चुके हैं कि उस समय - अर्थात 1906 में - ट्रान्सवाल एक
शाही उपनिवेश था। ऐसे उपनिवेशों के राजदूत उपनिवेश-मंत्री को अपने अपने
उपनिवेश के हितों से संबंधित बातों से परिचित रखने के लिए सदा इंग्लैंड में
रहते हैं। ट्रान्सवाल के राजदूत सर रिचर्ड सॉलोमन थे, जो दक्षिण अफ्रीका के
एक प्रख्यात वकील थे। खूनी कानून को अस्वीकार करने का निश्चय लॉर्ड एल्गिन
ने सर रिचर्ड सॉलोमन के साथ विचार-विमर्श करके ही किया था। 1 जनवरी 1907 से
ट्रान्सवाल को उत्तरदायी शासन की सत्ता प्राप्त होनेवाली थी। इसलिए लॉर्ड
एल्गिन ने सर रिचर्ड सॉलोमन को यह विश्वास दिलाया था कि ''यही कानून यदि
ट्रान्सवाल की धारासभा में उत्तरदायी शासन की सत्ता मिलने के बाद पास होगा,
तो बड़ी (साम्राज्य) सरकार उसे अस्वीकार नहीं करेगी। परंतु जब तक
ट्रान्सवाल शाही उपनिवेश माना जाता है तब तक ऐसे रंग-भेद वाले कानून के लिए
बड़ी सरकार सीधी जिम्मेदार मानी जाएगी। और बड़ी सरकार के संविधान में जातीय
भेदभाव की राजनीति को स्थान नहीं दिया जाता। इसलिए इस सिद्धांत का पालन करने
के लिए मुझे फिलहाल तो इस खूनी कानून को अस्वीकार करने की ही सलाह सम्राट को
देनी होगी।''
इस प्रकार केवल नाम के लिए ही खूनी कानून रद हो और साथ ही ट्रान्सवाल के
गोरों का काम भी बन जाए, तो सर रिचर्ड सॉलोमन को कोई आपत्ति नहीं थी - क्यों
हो सकती थी? इस राजनीति को मैंने 'वक्र' कहा है। परंतु सच पूछा जाए तो इससे
अधिक तीखे विशेषण का प्रयोग करने पर भी इस नीति के प्रवर्तकों के साथ कोई
अन्याय नहीं होगा ऐसा मेरा विश्वास है। शाही उपनिवेशों के कानूनों के बारे
में साम्राज्य सरकार की सीधी जिम्मेदारी होती है। उसके संविधान में रंगभेद
और जातिभेद के लिए कोई स्थान नहीं है। ये दोनों बातें बड़ी सुंदर हैं।
उत्तरदायी शासन की सत्ता भोगनेवाले उपनिवेशों द्वारा बनाए गए कानूनों को बड़ी
सरकार एकाएक रद नहीं कर सकती, यह भी समझ में आने जैसी बात है। लेकिन उपनिवेशों
के राजदूतों के साथ गुप्त मंत्रणाएँ...
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